बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर...
क्योंकि मुझे अपनी औकात
अच्छी लगती है,
मैंने समंदर से सीखा है जीने
का सलीक़ा, चुपचाप से बहना और
अपनी मौज में रहना ।।
चाहता तो हु
की ये दुनियाबदल दू ....!
पर दो वक़्त की रोटी केजुगाड़ में
फुर्सत नहीं मिलती दोस्तो.. !!
महँगी से महँगी घड़ी पहन कर देख
ली,वक़्त फिर भी मेरे हिसाब से
कभी ना चला ...!
युं ही हम दिल को साफ़ रखा करते
थे ..पता नही था कि, 'कीमत
चेहरों की होती है' !!
अगर खुदा नहीं है तो उसका ज़िक्र
क्यों ??और अगर खुदा है तो फिर
फिक्र क्यों ???
पैसे से सुख कभी खरीदा नहीं जाताऔर
दुःख का कोई खरीदार नहीं होता ।
मुझे
जिंदगी का इतना तजुर्बा तो नहीं,पर
सुना है सादगी मे लोग जीने नहीं देते।
किसी की गलतियों को बेनक़ाब
ना कर, 'ईश्वर' बैठा है, तू हिसाब
ना कर' !!
0 Comments:
Post a Comment
Thank to subscribe and encourage us